कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन
कोशिका चक्र की प्रावस्थाएं (Phases of cell cycle)
सन् 1953 में हॉवर्ड तथा पेले में कोशिका चक्र में घटित होने वाली विभिन्न प्रावस्थाओं की खोज की थी। ये दो प्रकार की होती हैं।
अन्तरावस्था (Interphase)
एम-प्रावस्था (m-phase)
1) अन्तरावस्था
यह कोशिका चक्र की सबसे लम्बी प्रावस्था है। इसे विश्राम प्रावस्था भी कहते हैं, यह वह प्रास्था हैं, जिसमें कोशिका कोशिका विभाजन के लिए तैयार होती है। अन्तरावस्था को निम्नलिखित तीन उपावस्थाओं में विभाजित किया गया है।
(i) G1- उपावस्था या पश्च सूत्री विभाजन उपावस्था : इस प्रावस्था में DNA के लिए आवश्यक न्यूक्लियोटाइड, RNA प्रोटीन्स एवं आवश्यक विकरों आदि का संश्लेषण एवं संचय होता है। इस अवस्था मे DNA प्रतिकृति नहीं करता ।
(ii) S – उपावस्था या संश्लेषण उपावस्था : S- उपावस्था या संश्लेषण उपावस्था के दौरान DNA का निर्माण एवम इसकी प्रतिकृति होती है, अत: हिस्टोन प्रोटीन का संश्लेषण होता है। इस दौरान DNA की मात्रा दोगुनी हो जाती है।
एम- प्रावस्था
एम-प्रावस्था उस अवस्था को व्यक्त करता है, जिसमें वास्तव में कोशिका विभाजन या सूत्री विभाजन होता हैं। एम- प्रावस्था’ का आरम्भ केन्द्रक के विभाजन (Karyokinesis) से होता है और इनका अन्त कोशिका द्रवय विभाजन के साथ होता है।
कोशिका विभाजन के प्रकार
यह तीन प्रकार का होता है।
A. असूत्री विभाजन (Amitosis)
B. सूत्री या समसूत्री विभाजन (mitosis)
C. अर्धसूत्री विभाजन (meiosis)
A) असूत्री विभाजन :
इस प्रकार का विभाजन सरल रचना वाले जीवों, जैसे- जीवाणु, कवक, माइकोप्लाज्मा तथा उच्च वर्ग के पौधों की पुरानी तथा नष्ट हो रही कोशिकाओं में होता में होता है। इस विभाजन को सीधा विभाजन भी कहते हैं।
B) सूत्री विभाजन
इस प्रकार का कोशिका विभाजन सभी कायिक कोशिकाओं (Somatic cells) तथा जनन कोशिकाओं में पाया जाता हैं। सूत्री विभाजन को अन्य नामों जैसे- समसूत्री विभाजन या कायिक विभाजन के नामों से भी जाना जाता है। फ्लेमिंग ने 1881 में सर्वप्रथम इसका पता लगाया। सूत्री विभाजन के निम्नलिखित दो प्रमुख भाग हैं।
1) केरियोकाइनेसिस (Karyokinesis)
2) साइटोकाइनेसिस (Cytokinesis)
1) केरियोकाइनेसिस
इस क्रिया में केंद्रक विभाजित होता हैं। यह क्रिया निम्नलिखित चार पदों में संपन्न होती हैं।
i) पूर्वावस्था (Prophase) : S व G2 उपावस्था में डीएनए के नए सूत्र बन तो जाते हैं, लेकिन आपस में गुथे होने के कारण ये स्पष्ट नहीं होते। गुणसूत्रीय पदार्थों के संघनन का प्रारम्भ ही पूर्वावस्था की पहचान है।
अर्धसूत्री विभाजन-I (Meiosis-1)
इसमें एक मात्र कोशिका से दो संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है, जो कि अगुणित होती हैं। इसी कारण अर्धसूत्री विभाजन – I को न्यूनकारी विभाजन या विषम- विभाजन के नाम से भी जाना जाता है। इसे निम्नलिखित उप- अवस्थाओ में विभाजित किया जा सकता है।
पूर्वावस्था – I (prophase-I)
मध्यावस्था – I (metaphase I)
पश्चावस्था – I (Anaphase -I)
अंत्यावस्था – I (Telophan-I)
इन्टरकाइनेसिस: अर्धसूत्री विभाजन-I व II के मध्य का अंतराल इन्टरकाइनेसिस कहलाता है। इसमें कोशिका की तैयारी सूत्री विभाजन के अन्तरावस्था जैसे ही होती हैं।
(1) पूर्वावस्था – II (prophase-II)
(2) मध्यावस्था – II (metaphase -II)
(3) पश्चावस्था – II (Anaphase – II)
(4) अंत्यावस्था – II (Telophase-II)
अर्धसूत्री विभाजन का महत्व
अर्धसूत्री विभाजन महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:-
1. इसके फलस्वरूप बनी संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित कायिक कोशिकाओं की संख्या की आधी रह जाती हैं। यह लैंगिक जनन के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि प्रजन्न में एक मादा युग्मक और एक नर युग्मक के संयुग्मन से युग्मनज बनता है। इसमें गुणसूत्रों की संख्या फिर द्विगुणित(2n) हो जाती है। युग्मनज नए शरीर की रचना करता है, इस प्रकार प्रत्येक जाति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है।
2. प्रथम अर्धसूत्री विभाजन की स्थूलसूत्र अवस्था में विनिमय (Crossing over) होता है, जिसके कारण चारों पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या तो आधी रहती हैं, परंतु इनकी आनुवंशिक संरचना में अन्तर आ जाता है और इसके फलस्वरूप नए संयोग का निर्माण होता है, जिनसे प्रजातियों में विभिन्नताऍं आती हैं जो कि विकास का आधार है।
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