हाइड्रोकार्बन नोट्स
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हाइड्रोकार्बन
हाइड्रोजन और कार्बन से बने यौगिकों को हाइड्रोकार्बन (hydrocarbon in Hindi) कहते हैं। यह संतृप्त तथा असंतृप्त दोनों प्रकार के होते हैं। हमारे दैनिक जीवन में हाइड्रोकार्बन का महत्वपूर्ण योगदान है। जैसे – एलपीजी और सीएनजी आदि ईंधन के रूप में प्रयोग में लाए जाने वाले हाइड्रोकार्बन हैं। एलपीजी द्रवित पेट्रोलियम का संक्षिप्त रूप है जबकि सीएनजी संघनित प्राकृतिक गैस का संक्षिप्त रूप है।
हाइड्रोकार्बन का वर्गीकरण
हाइड्रोकार्बन विभिन्न प्रकार के होते हैं। हाइड्रोकार्बन का कार्बन-कार्बन (C—C) आबंध की प्रकृति के आधार पर तीन वर्गों में वर्गीकरण किया गया है।
1. संतृप्त हाइड्रोकार्बन
2. असंतृप्त हाइड्रोकार्बन
3. एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन
1. संतृप्त हाइड्रोकार्बन
वह हाइड्रोकार्बन जिनमें कार्बन परमाणु परस्पर एकल बंधों द्वारा जुड़े होते हैं। तब इस प्रकार के हाइड्रोकार्बनों को संतृप्त हाइड्रोकार्बन कहते हैं।
जैसे – मेथेन, एथेन, प्रोपेन तथा ब्यूटेन आदि।
2. असंतृप्त हाइड्रोकार्बन
वह हाइड्रोकार्बन जिनमें कार्बन परमाणु परस्पर द्विआबंध या त्रिआबंध द्वारा जुड़े होते हैं। तब इस प्रकार के हाइड्रोकार्बनों को असंतृप्त हाइड्रोकार्बन कहते हैं।
जैसे – एथिलीन, प्रोपिलीन, एसिटिलीन आदि।
असंतृप्त हाइड्रोकार्बनों में द्विआबंध तथा त्रिआबंध दोनों भी उपस्थित हो सकते हैं।
3. एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन
वह हाइड्रोकार्बन जिनमें बेंजीन और उसके व्युत्पन्न तथा वे चक्रीय यौगिक जो रसायनिक व्यवहार में बेंजीन से समानताएं प्रदर्शित करते हैं। एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन कहलाते हैं। इन्हें ऐरीन भी कहा जाता है।
जैसे – बेंजीन, टॉलूईन, नैप्थेलीन तथा बाइफेनिल आदि।
एरोमैटिक हाइड्रोकार्बनों में एक या एक से अधिक बेंजीन वलय हो सकती हैं।
2. ताप अपघटन – एल्केनों को वायु की अनुपस्थिति में उच्च ताप पर गर्म करने पर कार्बनिक विलायकों का तापीय अपघटन हो जाता है। जिसे ताप अपघटन कहते हैं।
एल्केन की संरचना
एल्केन श्रेणी के प्रथम सदस्य मेथेन की संरचना समचतुष्फलकीय होती है। एवं दूसरे सदस्य एथेन के अणुओं में दो चतुष्फलक एक दूसरे से जुड़े होते हैं।
मेथेन और एथेन के समान ही सभी एल्केनों में प्रत्येक कार्बन परमाणु चार एकल बंध, एक समचतुष्फलकीय के चार शीर्षों की ओर दिष्ट रहते हैं। एल्केन में सभी बंध सिग्मा बंध (σ-बंध) होते हैं। तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु sp3 संकरित होता है। एल्केनों के किन्ही दो बंधों के बीच 109°28’ मिनट का कोण होता है।
एल्कीन
वह असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जिसमें केवल एक कार्बन-कार्बन द्विआबंध (>C=C<) उपस्थित होता है। एल्कीन (alkenes in Hindi) कहलाती है। एल्कीन का सामान्य सूत्र CnH2n होता है। एथिलीन या एथीन (C2H4) एल्कीन श्रेणी का प्रथम सदस्य है। तथा प्रोपिलीन (प्रोपीन) इस श्रेणी का दूसरा सदस्य है। एल्कीन को ओलिफिन भी कहते हैं।
एल्कीन के विचरन की विधि
1. एल्काइन से – लिंडलार उत्प्रेरक की उपस्थिति में एल्काइन हाइड्रोजन के द्वारा अपचयित होकर एल्कीन देती है।
2. ऐल्कोहॉल के निर्जलीकरण – ऐल्कोहॉल को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर जल का एक अणु मुक्त होता है। और एल्कीन बनती है।
अतः इस अभिक्रिया को ऐल्कोहॉल का अम्लीय निर्जलीकरण कहते हैं।
एल्कीन के उदाहरण
एल्कीन के अनेक उदाहरण हैं जो निम्न प्रकार से हैं।
1. एथिलीन – C2H4
2. प्रोपिलीन – C3H6
3. ɑ, β या आइसो ब्यूटिलीन C4H8
4. ɑ या β एमिलीन – C5H10
एल्कीन के भौतिक गुण
एल्कीन श्रेणी का प्रथम सदस्य एथिलीन तथा द्वितीय सदस्य प्रोपिलीन है।
एल्कीन जल में विलेय होती है। परंतु कार्बनिक विलायक जैसे – ऐल्कोहॉल, ईथर और बेंजीन में विलेय होती हैं।
एल्कीन श्रेणी के प्रथम तीन सदस्य गैसें हैं तथा अगले 14 सदस्य द्रव हैं। एवं इससे अधिक सदस्य ठोस होती हैं।
एथीन, रंगहीन तथा हल्की मधुर सुगंध वाली गैस है। एवं अन्य सभी एल्कीनें रंगहीन तथा सुगंधित हैं।
एल्कीनों के गलनांक, क्वथनांक तथा आपेक्षिक घनत्व अणुभार के बढ़ने पर बढ़ते जाते हैं।
सभी एल्कीनें वायु में प्रकाश युक्त लौ के साथ जलती हैं।
एल्कीन के रासायनिक गुण
1. हाइड्रोजन का योग – एल्कीन बारीक पिसे हुए निकेल (पैलेडियम या प्लैटिनम) की उपस्थिति में हाइड्रोजन गैस के एक अणु के योग से एल्केन बनाती है।
2. जल का संयोजन – एल्कीन अम्लीय उत्प्रेरकों की उपस्थिति में जल के साथ अभिक्रिया करके एल्कोहॉल बनाती हैं यह अभिक्रिया मार्कोनिकॉफ नियमानुसार होती है।
3. दहन – एल्कीन वायु या ऑक्सीजन में दीप्तिमान ज्वाला के साथ जलती है। तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और जल बनता है।
एल्कीन की संरचना
एल्कीन में C=C द्विआबंध होता है। जिसमें एक प्रबल σ-बंध तथा एक दुर्बल π-बंध होता है। सभी एल्कीनों में द्विआबंध कार्बन परमाणु पर sp2 संकरण होता है। प्रत्येक कार्बन परमाणु से दो हाइड्रोजन परमाणु σ-बंध द्वारा जुड़े रहते हैं। तथा H–C–H के बीच 120° का कोण होता है। C—C एकल बंध की लंबाई (1.54 Å) की तुलना में C=C द्विआबंध की लंबाई (1.34 Å) छोटी होती है। एल्कीन की संरचना को चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
एल्काइन
वह असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जिसमें दो कार्बन परमाणुओं के मध्य त्रिआबंध उपस्थित होता है। एल्काइन (alkynes in Hindi) कहलाती हैं। एल्काइन का सामान्य सूत्र CnH2n-2 होता है। एल्काइन श्रेणी का प्रथम सदस्य एसिटिलीन है एल्केन और एल्कीन की तुलना में एल्काइन में हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या कम होती है।
एल्काइन बनाने की विधि
1. प्रयोगशाला विधि – कैल्शियम कार्बाइड की जल के साथ क्रिया कराने पर एल्काइन (एसिटिलीन) बनती है।
2. हैलोफॉर्म से – क्लोरोफॉर्म अथवा आयोडोफॉर्म को सिल्वर चूर्ण के साथ गर्म करने पर एल्काइन प्राप्त होती है।
एल्काइन के उदाहरण
एल्काइनों के निम्न उदाहरण है जैसे –
1. एसिटिलीन – C2H2
2. एनिलीन (या मेथिल एसिटिलीन) – C3H4
3. क्रोटोनिलीन (या एथिल एसिटिलीन) – C4H6
एल्काइन के भौतिक गुण
एल्काइन श्रेणी के प्रथम तीन सदस्य गैस हैं। तथा अगले आठ सदस्य द्रव एवं अन्य उच्चतर सदस्य ठोस होते हैं।
एल्काइनें रंगहीन तथा गंधहीन होती हैं। एसिटिलीन की लहसुन जैसी गंध होती है।
एल्काइन जल में अविलेय होती हैं एवं कार्बनिक विलायक जैसे ईथर, बेंजीन, एसीटोन आदि में विलेय होती है।
एल्काइनों के गलनांक, क्वथनांक और आपेक्षिक घनत्व अणुभार के बढ़ने के साथ बढ़ते हैं।
एल्काइन के रासायनिक गुण
1. दहन – एसिटिलीन वायु या ऑक्सीजन गैस में दीप्त ज्वाला के साथ जलती है तथा अभिक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड CO2 और जल बनते हैं।
2. हाइड्रोजन का योग – सूक्ष्म विभाजित निकैल, प्लेटिनम या पैलेडियम उत्प्रेरक की उपस्थिति में एल्काइनों में हाइड्रोजन का योग दो पदों में होता है पहले एल्कीन तथा बाद में एल्केन बनती है।
3. जल का योग – एल्काइन 333K ताप पर मर्क्यूरिक सल्फेट तथा तनु सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में जल के एक अणु के साथ संयुक्त होकर कार्बोनिल यौगिक बनाती हैं।
एल्काइन की संरचना
एथाइन (एसिटिलीन) अणु की आकृति रेखीय होती है। एथाइन तथा अन्य एल्काइनों में त्रिआबंध कार्बन परमाणु पर sp संकरण होता है। एसिटिलीन के दो कार्बन परमाणु एक दूसरे से त्रिआबंध द्वारा जुड़े रहते हैं। जिसमें एक σ-बंध और दो π-बंध होते हैं। चित्र द्वारा दर्शाया गया है।
H–C–C आबंध के बीच 180° का कोण होता है। C≡C त्रिआबंध की लंबाई (120pm), C=C द्विआबंध की लंबाई (134pm) और C–C एकल बंध की लंबाई (154pm) की तुलना में छोटी होती है।
बेंजीन
बेंजीन मोनोसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बनों की सजातीय श्रेणी का प्रथम सदस्य है। इस श्रेणी का सामान्य सूत्र CnH2n-6 होता है। बेंजीन का अणु सूत्र C6H6 होता है। बेंजीन सामान्यतः विशिष्ट गंध वाली रंगहीन द्रव या ठोस होती है। यह हैलोजनीकरण, नाइट्रीकरण, सल्फोनीकरण तथा अन्य प्रतिस्थापन अभिक्रियाएं सफलतापूर्वक प्रदर्शित करती है।
बेंजीन बनाने की विधि
1. प्रयोगशाला विधि – बेंजोइक अम्ल को सोडा लाइम के साथ गर्म करने पर बेंजीन प्राप्त होती है। यह अभिक्रिया कार्बोक्सिलिक अम्ल का विकार्बोक्सिलिकरण कहलाती है।
2. फिनोल के अपचयन से – फिनोल की वाष्प को जिंक चूर्ण पर प्रवाहित करने पर बेंजीन अपचयित होती है।
बेंजीन के भौतिक गुण
बेंजीन और इसके समजातीय रंगहीन द्रव या ठोस होते हैं। जिसकी विशेष गंध होती है।
बेंजीन का क्वथनांक 80°C होता है। तथा यह एक अति ज्वलनशील द्रव है।
बेंजीन जल में अविलेय है परंतु कार्बनिक विलायकों जैसे ईथर और एल्कोहोल में पूर्ण विलेय है।
बेंजीन एक अध्रुवी यौगिक है। इसका द्विध्रुव आर्घूण शून्य है।
बेंजीन काले धुएं की ज्वाला के साथ जलता है।
बेंजीन तथा अधिकतर एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जल से हल्के होते हैं।
बेंजीन के रासायनिक गुण
1. नाइट्रोकरण – बेंजीन, सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में नाइट्रिक अम्ल HNO3H के साथ क्रिया करके नाइट्रोबेंजीन बनाती है। यह एक इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया है।
2. हाइड्रोजनीकरण – निकैल उत्प्रेरक की उपस्थिति में उच्च ताप एवं दाब पर बेंजीन, हाइड्रोजन के साथ अभिक्रिया द्वारा साइक्लोहेक्सीन C6H12 बनाती है।
बेंजीन की संरचना
बेंजीन का अणु सूत्र C6H6 होता है। बेंजीन अणु में इसकी संगत एल्केन से 8 हाइड्रोजन कम हैं जिससे यह पता चलता है कि बेंजीन एक अत्यधिक असंतृप्त यौगिक है।
बेंजीन विशेष परिस्थितियों में हैलोजन और हाइड्रोजन के साथ योगात्मक यौगिक बनाती हैं।
बेंजीन की केकुले संरचना
सर्वप्रथम केकुले ने बेंजीन की चक्रीय संरचना प्रस्तुत की। तथा बताया कि बेंजीन 6 कार्बन परमाणुओं का एक चक्रीय अणु है प्रत्येक कार्बन से एक हाइड्रोजन परमाणु जुड़ा होता है तथा 6 कार्बन परमाणु एक दूसरे से एकांतर से एकल और द्विआबंध से जुड़कर एक षट्कोणीय वलय बनाते हैं। बेंजीन की संरचना चित्र में दर्शाई गई है।
यह दोनों ही बेंजीन की संरचना है। कि केकुले सूत्र से बेंजीन के 1, 2-और 1, 6-दो ऑर्थो-द्विप्रतिस्थापित उत्पन्न होते हैं। परंतु बेंजीन का केवल एक ऑर्थो-द्विप्रतिस्थापित उत्पन्न होता है। यह केकुले सूत्र का एक दोष है।
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